Punjab News: पंजाब में पराली जलाने के मामले, अमृतसर जिले में बढ़ती चिंता
Punjab News: पंजाब के अमृतसर जिले में पराली जलाने के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, जो न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि किसानों के लिए भी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर रहा है। हाल के दिनों में, सिर्फ नौ दिनों के भीतर 51 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए हैं। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) ने पुष्टि की है कि इनमें से 31 स्थानों पर पराली जलाने की घटनाएं सही पाई गई हैं। प्रशासन ने अब तक 31 किसानों पर कुल 67,500 रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसमें से 32,500 रुपये वसूल भी किए गए हैं।
अमृतसर में पराली जलाने के मामले
अमृतसर जिले में 22 सितंबर तक पराली जलाने के मामलों का वितरण इस प्रकार है:
- अमृतसर-2: 15 मामले
- मजीठा: 15 मामले
- अमृतसर-1: 8 मामले
- बाबा बकाला: 5 मामले
- अजनाला: 1 मामला
- लोपूके: 1 मामला
इस बार, खेतों में धान की फसल पिछले साल की तुलना में अधिक क्षेत्र में बोई गई है, जिससे पराली जलाने की संभावना भी बढ़ गई है। वर्तमान में, जिले में धान की फसल 34,000 हेक्टेयर में बोई गई है और इसकी अनुमानित उपज 2,45,000 मीट्रिक टन है। पिछले साल की तुलना में, जहां 41,149 हेक्टेयर में धान की फसल बोई गई थी, वहीं 2,94,585 मीट्रिक टन उपज प्राप्त हुई थी। इसके पूर्व, 2022-23 में धान की फसल 72,943 हेक्टेयर में बोई गई थी, जिससे 4,90,000 मीट्रिक टन की उपज हुई थी।
प्रशासन का प्रयास
जिला उपायुक्त साक्षी साहनी ने माना कि किसान जल्दी से खेतों को साफ करने के लिए मटर की खेती शुरू करने के लिए पराली जलाते हैं। इसके समाधान के लिए, प्रशासन ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों से सलाह ली है ताकि किसान अपने खेतों में पराली को जलाए बिना ही मटर की फसल उगा सकें। प्रशासन ने सभी एसडीएम को निर्देशित किया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में जाएं और किसानों को समझाएं कि पराली न जलाने के लिए क्या विकल्प उपलब्ध हैं।
किसानों को मुफ्त मशीनरी उपलब्ध कराने के लिए भी कदम उठाए गए हैं। बालर मशीनों की व्यवस्था की गई है, जो मुक्ता, गुरदासपुर और अन्य जिलों से मंगवाई गई हैं। इन बालरों के लिए टोल टैक्स से छूट का प्रावधान भी है, जिससे किसान आसानी से अपनी पराली को ले जा सकें। छोटे किसानों के लिए, जिनके पास ट्रैक्टर-ट्रॉली नहीं है, प्रशासन ने उनकी पराली का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी ली है।
प्रेरणादायक कहानी
जबकि प्रशासन किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रेरित कर रहा है, गाँव भोवाली के एक किसान, गुरदेव सिंह ने पिछले पांच वर्षों से बिना पराली जलाए गेहूँ की खेती कर अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हैं। उन्होंने बताया कि 2019 से वह 20 एकड़ भूमि में गेहूँ की फसल बिना पराली जलाए उगाते हैं, जिससे नाइट्रोजन उर्वरक की मात्रा लगभग आधी हो गई है और उपज में 1.5 से 2 क्विंटल प्रति एकड़ की वृद्धि हुई है।
गुरदेव कहते हैं कि वह पराली को बालर से नहीं निकालते, बल्कि उसे खेत में ही मिट्टी में मिला देते हैं। इसके लिए वह हैप्पी सीडर और सुपर सीडर का उपयोग करते हैं। पहले दो वर्षों में उन्हें इसका कोई खास लाभ नहीं दिखा, लेकिन उसके बाद खेत की उर्वरता बढ़ने लगी और उर्वरक की मात्रा में कमी आई।
समाधान और जागरूकता
इस समस्या का समाधान केवल प्रशासन के प्रयासों से नहीं होगा, बल्कि किसानों की जागरूकता और शिक्षा भी आवश्यक है। यदि किसान पराली जलाने के बजाय उसे खेत में मिलाने के लिए उत्सुक हों, तो वे न केवल अपने खेतों की उर्वरता बढ़ा सकते हैं, बल्कि खेती की लागत को भी कम कर सकते हैं।
प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया है कि किसानों को सही जानकारी और उपकरण उपलब्ध कराए जाएं ताकि वे पराली जलाने के बजाय उसे उपयोगी तरीके से निपटा सकें। किसानों को यह समझाना आवश्यक है कि पराली जलाने से केवल पर्यावरण को ही नुकसान नहीं होता, बल्कि इससे उनके खेतों की उर्वरता भी प्रभावित होती है।